MERI MAYA

Chapter 1

" विक्रम, please फूलों को मत तोड़ो? इन्हें दर्द होगा"

मै माया की बातों पर हँस दिया करता था और कहता..." क्या माया कुछ भी? ये क्या इंसान है जो दर्द होगा फूल तोड़ने के लिए होते है इन्हें दर्द नहीं होता.. ये देखो?" मै फूलों को तोड़ता और फूलों का गदा बना कर लेट जाता। मै आज माया से कहना चाहता हूँ तुम सही थी, मैंने देखा है इन फूलों को रोते हुए। तुम्हारे जाने के बाद, फूल मुर्झा से गये थे न कोई इन्हें देखने वाला था और न कोई सेवा करने वाला। मैंने 3 महीनों में बगीचे को फिर से हरा-भरा बना दिया है। बगीचे के बीचोबीच खड़ा आम का पेड़ कितना बड़ा हो गया है। इसे मेरी माया ने लगाया था। मेरी माया ही थी जिसने मुझे पेड़-पौधों का महत्व समझाया। जब मै यहाँ नहीं होता था तो घंटों इनसे बात करती थी। वो कहती थी " इन् सबके बगेर हम जी नहीं सकते? अगर ये न हो तो चारों तरफ अशांति होगी, हम भूखे मर जायेंगे। इसलिए तुम पेड़-पौधों की कद्र करना।" मेरे बाद वो किसी किसी चीज़ से प्यार करती थी तो वो थे पेड़-पौधे।

दोस्तों मै आपको "garden" की ख़ास बात बताना तो भूल ही गया, उस बगीचे का एक रास्ता नदियों के बीचों-बीच से होकर गुजरता था। उस जगह को बड़ी खूबसूरती से बनाया गया था। वहाँ की हवाएं बहुत तेज चलती है, और वहाँ अक्सर पंछियों का जमावड़ा लगता है। इस जगह को मै कभी भूल नहीं सकता। हम जब भी यहाँ आते थे तो इस जगह पर जरूर आया करते थे। हम यहाँ घंटों बात किया करते थे और पहाड़ों से घिरे वादियों में खो जाया करते थे। मुझे याद है वो दिन, जब माया पहली बार मुझे यहाँ लेकर आयी थी। उसने मुझसे कहा था...

" विक्रम, तुम अपनी आँखे बंद करो और लम्बी सांस लेकर इन हवाओं को महसूस करो।"

मैंने अपनी आँखे बंद की और जैसा माया ने कहा, मैंने वैसा ही किया

"विक्रम, तुम्हे कुछ आवाज़ सुनाई दिया..."

"हाँ, कुछ....khisssssss.....p.i.s.ssssss...???"

" हवाएँ, आपस में बात कर रही है, चलो मै तुम्हे एक और चीज़ दिखाती हूँ"

माया मुझे अपने साथ पक्षियों के बीच में ले गयी और कहा.....

" विक्रम, यहाँ 100 से भी अधिक जातियों के पक्षी है जो कभी लड़ते नहीं हमेसा एक साथ रहते है। इनकी ख़ास बात जानते हो क्या है अगर इनपे कोई बिपति आ जाये तो वे डरते नहीं बल्कि मिलकर सामना करते है।"

" काश, हममें भी इनकी तरह एकता होती तो हम कभी जातियों और धर्म के नाम पर नहीं लड़ते। हम पता नहीं क्यूँ किसी की भी बातों में आ जाते है और एक दुसरे को मारने पर उतारू हो जाते है।"

"हाँ, तुमने सही कहा, मुझे विश्वास है की वो दिन जल्द आयगा जब हम जाती और धर्म के नाम पर नहीं लड़ेंगे।"

मैने माया को देखा, पक्षियों को दाना डालते हुए, उस दिन वो कितनी खूबसूरत लग रही थी। उसके बाल हवा में लहरा रहे थे और उसकी मीठी आवाज़ जिसके बोलने पर पक्षी उसकी और भागे चले आ रहे थे। वो पक्षियों के बीच में खड़ी थी। जब उसने मुझे प्यार से देखा तो लगा मुझे सिने में तीर लगा है। उसने मुझे आने का इशारा किया, मै कुछ कदम बढ़ा ही था की मेरा पैर "मोर" के पंख पर पड़ गया। मोर ने मुझे दौड़ा दिया। मै आगे-आगे भाग रहा था और पक्षी मेरे पीछे-पीछे। मै जब भी उस दिन को याद करता हूँ मेरी हंसी छूट जाती है। अगर माया न होती तो शायद सारे पक्षी मुझे मार डालते। माया ने मुझे दोस्ती कराया और सारे पक्षियों के साथ रहना सिखाया। हम जब कभी उदाश होते थे तो इनके साथ खेला करते थे। वाकई ये जगह हमारे सारे दर्द मिटा देती थी। ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं था, हमने तो इस जगह का नाम भी रखा था "बगीचे का स्वर्ग"। मुझे याद है वो दिन जब हमारी शादी थी और हम यहाँ पक्षियों के बीच खेल रहे थे। मेरी माया सबसे अलग थी, शाम को शादी थी और सुबह हम छुपते-छुपाते घर से निकल गये थे। हमारा परिवार उस दिन हमे खोजता रहा और हम इधर मजे करते रहे। उन्हें तो लगने लगा था की हम कही भाग तो नहीं गए। उन्होंने तो पुलिस complain भी कर दी थी। मेरी माया बहुत शांत और नटखट थी। सारा idea उसी का था। वो नहीं चाहती थी की हमारी शादी boring हो बल्कि वो तो हमारी शादी को यादगार बनाना चाहती थी। हम जब शाम को घर पहुँचे तो हमे बहुत डांट पड़ी थी।


उस दिन जब मै और माया garden में थे तो उसने मुझसे एक इक्षा जाहिर की थी। मेरा सर माया की गोद में था और वो मेरे बालों सहलाते हुए कह रही थी???

" विक्रम, मुझे ये "garden" बहुत पसंद है क्या तुम मेरे लिए खरीद सकते हो???

मैंने कहा " माया, इस वक़्त मेरे पास इतने पैसे नहीं है पर हाँ एक दिन जरुर खरीदूँगा।"

आज मै माया से कहना चाहता हूँ की मैंने पूरा बगीचा खरीद लिया है और जानती हो इस बगीचे का नाम मैंने तुम्हारे नाम पर रखा है "MAYA GARDEN"। काश मै ये शब्द माया से कह पाता। आज मेरे पास सबकुछ तो है पर तुम नहीं हो।

मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था, जब माया ने राहुल को जन्म दिया कितने खुश थे हम राहुल को लेकर। हमने राहुल के लिए ढेर सारे सपने देखे थे। मै चाहता था की राहुल मुझसे भी बड़ा bussiness man बने पर मेरी माया चाहती थी की वो रोनाल्डो की तरह फुटबॉलर बने। हम दोनों में से कोई मानने को तैयार नहीं था। फिर हमने अंत में निर्णय लिया की राहुल वही बनेगा जो वो खुद चाहेगा।

माया राहुल से कहती थी.....

" अले...अले....मेरा राहुल बेटा, तुम्हारे पापा कितने अच्छे है तुम्हारे लिए दूध गर्म करते है,पिलाते है, तुम्हे नहलाते है, तुम्हारी मालिश करते है, डाईपर बदलते है और ढेर सारे खिलोने लेकर आते है देखो तो वो मुझे कोई काम करने नहीं देते।"

मैंने कहा " तुम भी न माया, राहुल मेरा बेटा है और उसका ध्यान उसके पापा नहीं रखेंगे तो और कौन रखेगा।...और माया तुम मेरी पत्नी हो और तुम्हारी हर जरुरत का ख्याल रखना मेरा कर्तव्य है।

" विक्रम..... सच में तुम एक अच्छे पिता हो और एक अच्छे पति। मै "lucky" हूँ जो मुझे तुम मिले।

मै इन् शब्दों को जब भी याद करता हूँ रो पड़ता हूँ। मै इनमे से कुछ भी नहीं बन पाया न एक अच्छा पिता और न एक अच्छा पति। मै शादी के 5 सालों को अपने अन्दर समेट लेना चाहता हूँ, क्यूंकि उसके बाद मेरी जिंदगी नरक बन गयी। मै उस दिन को कोसता हूँ जब मेरा bussiness partner "रस्तोगी" मेरी जिंदगी में आया। मुझे नहीं पता था की वो मेरी तरक्की से जलता है। उसी ने मुझे शराब की लत लगवाई। मै तो मना करता था पर वो कहता था....

" विक्रम, शराब रहिसो का वो रशपान है जो सिर्फ आनंद ही आनंद देता है। इसके बगैर जिंदगी अधूरी है यही तो मर्द की असली पहचान है।"

" नहीं रस्तोगी, मैंने माया से वादा किया है की मै कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा।"

" ओह common यार, परिवार के मोह-माया में फंसोगे तो कभी जिंदगी नहीं जी पाओगे, मुझे देखो आज मै 10 कम्पनी का मालिक हूँ और तुम सिर्फ 5 कम्पनी के। मेरे पास अरबों रुपये cash पड़े है और तुम्हारे पास 20 करोड़ भी नहीं। तुम जानते हो, ये सब मैंने कैसे किया... इस शराब की वजह से। इसी ने मुझे परिवार से दूर रखा और आज मै "canada" का नामी bussiness man हूँ। अगर मै तुम्हारी तरह सोचता तो ये सब कभी नहीं कर पाता। तुम्हे जानकार हैरानी होगी,ये सब मैंने 2 सालों में achieve किया है। अगर तुम्हे मेरी तरह अरबों में खेलना है तो अपनी सोच बदलनी पड़ेगी। मै आज कामयाब इसलिए हूँ क्यूंकि मै कभी अपने काम के बीच अपने परिवार को नहीं लाता। इसलिए चोचलेबाजी छोड़ो और शराब पियो।

मै पता नहीं कब रस्तोगी के भंवर में फंसता चला गया। उसके मीठे शब्दों ने मुझ पर जादू कर दिया और शराब पिने पर मजबूर कर दिया। उस रात के बाद मै हर रात शराब पिने लगा। रस्तोगी मुझे हर brand के शराब पिलाने लगा। मुझे कुछ ही महीनो में शराब की लत लग गयी अब मेरा शराब के बिना जीना मुश्किल था। इसी बात का फायदा रस्तोगी ने उठाया और उसने शराब में नशीली दवाई मिलानी शुरु कर दी। मै उस दवाई का नाम तो नहीं बता सकता पर उसका सेवन करने के बाद मै 3 दिन तक नशे में रहता था।

रस्तोगी बहुत शातिर था, वो मेरी पत्नी से अच्छी तरह वाकिफ था इसलिए उसने मुझे bussiness के बहाने 2 साल माया से दूर रखा। उसने मुझे canada के माहौल में इस कदर ढाला की मै अपनी माया को भूल गया। मै हर वक़्त नशे में डूबा रहता था न मुझे न तो दिन का पता था न रात का। मै शुरू की दिनों में phone से बात करता था पर जैसे-जैसे नशा का असर बढ़ता गया मै माया को भुलता गया। अब तो 6 महीने हो गये थे उस से बात करते हुए। उसने जब भी मुझसे बात करने की कोशिश करती तो रस्तोगी बहाने बना दिया करता था। मेरी माया बहुत तेज और समझदार थी, उसने देखा मेरे bussiness के share को गिरते हुए। हमारी कम्पनी के बुरे हालात को देखकर वो समझ चुकी थी की रस्तोगी कोई बड़ा game खेल रहा है। उसने पुलिस की मदद ली और मुझे लेने canada आ गयी। जब माया मुझसे मिलने आयी तो उस वक़्त मै नशे में था। उसने देखा, मेरे कमरे में शराब की बोतलें भरी पड़ी थी। मेरी माया ने मुझे उठाने की कोशिश की.....

" विक्रम उठो, मै माया तुम्हे लेने आयी हूँ चलो घर चलो...."

मैंने नशे में कहा "कौन मा....या??? मै किसी मा.....या.....वा.....या को नहीं जानता। मै सिर्फ इस शराब के बोतल को जानता हूँ जाओं मेरे लिए शराब लेकर आओ।

उस दिन मैंने पहली बार माया को रोते देखा था। उसे मेरी हालत पर तरस आ रहा था, उसने अपनी नज़रे घुमा ली और खुद को संभाला। मेरी माया ने रस्तोगी से पाई-पाई का हिसाब लिया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया। रस्तोगी कोई बड़ा bussinessman नहीं था, वो तो एक "broker" था जिसने सैकड़ों लोगो को ठगकर करोड़ो कमाये थे। मेरी माया थी जिसने मुझे इंडिया वापिस लाया अगर वो न होती तो शायद मै कब का मर गया होता।

मेरी माया ने bussiness तो संभाल लिया था पर वो मुझे नहीं संभाल पाई। मेरा नशा दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा था। डॉक्टर ने माया को सलाह दी की मेरा इलाज नशे वाले अस्पताल मे कराये पर वो तैयार नहीं हुई??? वो नहीं चाहती थी की मेरा इलाज पागलों की तरह हो और मुझे किसी कष्ट से गुजरना पड़े। मेरी माया ने बहुत कोशिश की मेरा नशा उतारने की पर वो नाकामयाब रही।
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मुझे याद है जब मेरे बेटे की शादी थी और मै किसी नालें में पड़ा हुआ था। मेरी माया ने ही तो सबकुछ संभाला था, अगर वो नहीं होती तो मेरे बेटे की शादी धूमधाम से नहीं हो पाती। सुबह मैंने देखा, अपनी बहू "सुहानी" को। कितनी सुन्दर और सुशिल थी? बिलकुल मेरी माया की तरह। आखिर थी भी तो उसी की पसंद।

मै पहले से कमजोर पड़ने लगा था। नशीली दवाओं की वज़ह से मेरा खाना पीना छूट गया था। मेरी बिगड़ती हालात को देखते हुए डॉक्टर ने कहा की अगर मैंने नशीली दवाई कुछ दिन और ली तो मेरी मृत्यु निश्चित है। नशा एक ऐशी चीज़ है जो किसी के ऊपर हावी हो जाये तो उसका छूटना नामुमकिन सा हो जाता है। मेरे साथ भी यही समस्या थी। डॉक्टर के मना करने के बावजूद मैंने उस रात शराब पी। मै नशे की हालत में घर पहुँचा, घर पर सिर्फ माया थी। मैंने माया को देखा वो कुछ छुपाने की कोशिश कर रही थी, मैंने उससे पूछा.....

" मुझसे क्या छुपा रही हो???..."

"नहीं...कुछ भी तो नहीं? तुम बैठो, मै तुम्हारे लिए खाना निकलती हूँ"

" रुको.. दिखाओ मुझे, तुम मुझसे क्या छुपा रही हो???"

जब उसने मुझे नहीं बताया तो मैंने उससे छिनने की कोशिश की। उस छिना-झपटी में नशीली दवाई का डब्बा गिर गया और मैंने देख लिया। मैंने उठाने की कोशिश की तो उसने मुझे धक्का दे दिया। मै उससे कहता रहा मुझे डिब्बा दे दे पर उसने मुझे नहीं दिया। मुझे दवा न मिलने के कारण मै खुद पर काबू खो रहा था और मेरा सर फटा जा रहा था। मैंने पास में रखा चाकू उठाया और उसे मार दिया। उसकी चीखे निकल पड़ी। कुछ पल के लिए मै जागा..... ये मैंने क्या कर दिया??? माया ने झट से मेरा हाथ चाकू से हटा दिया और अपना हाथ चाकू पर रख दिया, वो नहीं चाहती थी की मुझे क़त्ल के इलज़ाम में जेल जाना पड़े। मेरी माया ने मुझे भागने को कहा...पर मै नही भागा। उसने मुझे कसम दे दी और मुझे जाना पड़ा। कितनी अच्छी थी माया मरते वक़्त भी मेरा भला सोच रही थी और मै कितना बेरहम था जिसने अपनी पत्नी को ही मार दिया। मै दरवाज़े तक ही पहुँचा था की मेरा सर लोहे से टकराया और मै नीचे गिर गया। जब मेरी आँख खुली तो मै अस्पताल में था। मैंने देखा मेरे चारों तरफ पुलिस खड़ी थी, उन्होंने मुझसे कई सवाल पूछे, आपके सर पर चोट कैसे लगी? घर में चोर आये थे क्या? आपकी पत्नी को चाकू किसने मारे? कही आपने तो नहीं मारे? मैंने सोच लिया की मै पुलिस को बता दूंगा की माया को चाकू मैंने मारा है। मै उनसे सच कहने ही वाला था की बगल वाले रूम से आवाज़ आयी "patient को होश आ गया है।"

पुलिस जल्दी से बगल वाले रूम की और भागी और मै उनके पीछे भागा। पुलिसवालों को यकीन था की मैंने ही अपनी पत्नी को मारा है इसलिए उन्होंने मुझसे जुड़े कई सवाल माया से पूछा पर उसने सच नहीं बताया उसने बस इतना कहा " मेरे पति ने मुझे मारने की कोशिश नहीं की बल्कि बचाने की कोशिश की है उन्होंने मुझे चोरों से बचाया है।" सर मेरे पास वक़्त बहुत कम है तो क्या मै अपने पति से मिल सकती हूँ। मैं माया के पास गया.....

"माया, तुम ठीक हो"

" हाँ, और तुम...."

" मै भी ठीक हूँ.....तुमने पुलिश को सच क्यूँ नहीं बताया?"

" मेरे पास इन सवालों का जवाब नहीं है?"

" तुम मुझसे इतना प्यार करती हो"

वो मुझसे नाराज़ थी इसलिए उसने मुझसे कुछ नहीं कहा...

मैंने कहा " मै जानता हूँ तुम मुझसे नाराज़ हो, मुझे मेरी गलती की सजा मिलनी चाहिए मै पुलिश को सब सच बता दूंगा।"

उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा.... " नहीं तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे, तुम्हे कसम याद है न"

" अच्छा, मै डॉक्टर से मिलकर आता हूँ पूछता हूँ की वो मेरी माया को अस्पताल से कब discharge करेंगे"

" विक्रम, मेरे पास वक़्त बहुत कम है.....आज से मेरे परिवार की जिम्मेदारी तुम्हारे हाथों में है। मुझसे वादा करों की तुम मेरे परिवार को टूटने नहीं दोगे और आज के बाद न कोई शराब पियोगे और न कोई नशा करोगे"

" माया, मै तुमसे वादा करता हूँ पर please मुझे छोड़कर मत जाओं। मेरी गलती की मुझे इतनी बड़ी सजा मुझे मत दो"

मै रोता रहा, गिरगिराता रहा पर माया जा चुकी थी। वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे काला दिन था। उस दिन मैंने अपनी प्यारी माया को खोया था। मैंने कभी नहीं सोचा था की जिसके के लिए मै अपनी जान देने की बात करता था उसकी मै जान लूँगा। 13 दिन बाद मेरी माया का तेरहवीं था, सारे मेहमान आये हुए थे और मेरा बेटा शराब पी कर आया था। उसने आते ही सबको गालियाँ देनी शुरु कर दी। मैंने सुहानी को इशारा किया की वो जाकर राहुल को संभाले। उसने सँभालने की कोशिस तो राहुल ने उसे थप्पड़ जड़ दिया। मैं भी गया था सँभालने, ये सोचकर की वो अपने पिता की बात सुनेगा पर उसने भी मुझे थप्पड़ मार दिया। कितना शर्मनाक था मेरे लिए अपने बेटे के हाथ से थप्पड़ खाना। मुझे एक-एक करके सारी गलतियों की सजा मिल रही थी और मिले भी क्यों न आखिर अपने बेटे को पीना भी तो मैंने ही सिखाया था। मैंने ही कहा था "तुम विक्रम राठोड़ के बेटे हो, जूस पीना छोड़ो और शराब पियों।" 16' साल का था मेरा बेटा जब मैंने उसे शराब पिलाया था। मेरा बेटा भी वही कर रहा था जो कुछ दिन पहले मै माया के साथ कर रहा था।

माया के जाने के बाद मै सदमे में रहने लगा था न मुझे खुद का ख्याल था न दूसरों का। मैंने शराब पीना छोड़ दिया था पर माया के गम में डूबा हुआ था। मेरी गलतियाँ मुझे सोने नहीं देती थी। जब भी मै आँख बंद करता तो मुझे खून से लथपथ मेरी माया दिखती। हर पल मुझे ऐसा लगता की मेरी माया मेरा पीछा कर रही है और जब मै उसके पास जाता तो वो गायब हो जाती। मै जोर से चिल्लाता "मै जानता हूँ माया तुम मेरे आस-पास हो, मुझे तुम जो सजा देना चाहो दे दो पर please मुझसे बात करो। मै तुम्हारे बिना नहीं जी सकता।" मै माया के गम में पागल सा हो गया था। खुद से बात करना, खुद को गाली देना, खुद को पीटना मेरी आदत बन गयी थी। मै हर गलती के लिए खुद जिम्मेदार था। अगर मै समझदार होता तो ऐसी गलती कभी नहीं होती। कुछ दिन में मेरी हालत ऐसी हो गयी की मै राह चलते हर एक इंसान को कहने लगा " मैंने मेरी माया को मारा है इस चाकू से, लो तुम मुझे भी मार दो " मैंने तीन बार जान देने की कोशिश की पर पता नहीं कैसे बच गया? शायद मेरी माया ने बचाया था।

"ऐसा क्यूँ होता है जब हमारे अपने पास होते है तो हम उसकी कद्र नहीं करते, काश मैंने की होती तो आज माया मेरे साथ होती।" दोस्तों हमेसा अपनों की कद्र करना, उनकी इज्जत करना वरना तुम्हारी भी हालत मेरी जैसी हो जायगी। कभी- कभी हम अनजाने में ऐसी गलती कर बैठते है की उसे चाह कर भी वापस नहीं ला सकते, उसके बिछड़ने का गम क्या होता है मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता?

मै उसके गम से बाहर नहीं निकल पाता अगर छोटी बच्ची ने मुझे रास्ता नहीं दिखाया होता। उसी ने मुझे माया की promise याद दिलाई जो माया ने मुझसे की थी। उस दिन के बाद मैंने अपने परिवार को संभाला और व्यवसाय को भी। मेरी बहू सुहानी हर काम में मेरा हाथ बटांती थी। कोई भी काम बोल दो करने को, कभी ना नहीं कहती थी? बिलकुल मेरी माया की तरह। मै जब भी उसे देखता तो मेरी माया की याद आती थी। मै उस दिन को भूल नहीं सकता जब सुहानी ने कहा की आप दादू बनने वाले है। मै उस दिन इतना खुश हुआ की अपने पोता/पोती के दुनिया में आने के पहले ही पुरे मोहल्ले में मिठाइयाँ बाँट दी थी। मुझे याद नहीं मै पिछली बार कब हँसा था शायद माया के साथ।

उस दिन के बाद मेरी जिम्मेदारी बढ़ गयी थी मुझे सुहानी को भी संभालना था और नशेड़ी बेटे को भी। राहुल को न तो व्यवसाय की चिंता थी और न हमारे घर और परिवार की। वो दिन रात नशे में डूबा रहता था। उसकी शैतानियाँ तब बढ़ गयी, जब उसने सुहानी को मारना-पीटना शुरु कर दिया। मैंने अपने बेटे को समझाने की कोशिश की पर उसने मेरी बात नहीं सूनी मै जब भी सुहानी को देखता तो मुझे माया की याद आती, उसके चेहरे पर भी काले निशान थे बिलकुल इसी तरह। "काश", मैने नशा न की होती तो ये सब कभी नहीं होता, सुहानी के हर जख्म को देख मुझे एहसास हो रहा है की मैंने कितने दर्द दिए थे माया को? उसने इतने दर्द सहे पर मुझसे एक लफ्ज़ भी नहीं कहा आज मै खुद से वादा करता हूँ की मैंने जो माया के साथ किया वो सुहानी के साथ नहीं होने दूंगा।

मै उस दिन घर पर बैठा ऑफिस का काम कर रहा था की तभी कुछ गिलास के टूटने की आवाज़ सूनी। मै दौड़ कर हॉल में गया तो देखा की सुहानी कुछ छुपानी की कोशिस कर रही है और राहुल चाकू से धमका रहा है। मुझे वो दिन याद आ गये जब मैंने अपनी माया को चाकू से मारा था। राहुल ने चाकू से सुहानी को मारने की कोशिश की लेकिन बीच में मै आ गया और चाकू मेरे पेट के अन्दर चली गयी। चाकू की तेज धार से मेरा खून का कतरा बह निकला। मैंने खुद को संभाला और बेटे को धक्का दे दिया। मैंने उसका हाथ हटा कर खुद चाकू पकड़ लिया। मैने भी वही किया जो मेरी माया ने किया था। मैंने भी राहुल को कसम दी और उससे कहा की ये बात किसी को न बताये। उस दिन मैंने पहली बार अपने बेटे के आँख मे आँशु देखा था। वो मेरे लिए रो रहा था। मुझे याद नहीं पर मुझे कुछ मिनटों में आँख लग गयी और मै अंधेरों की दुनिया में चला गया। मै एक ऐसी दुनिया में था जिसे हम नर्क कहते है। मैंने अभी कुछ कदम आगे बढाया ही था की चीखने- चिलाने की आवाज़ ने मेरे कान के परदे हिला दिए। मै चिल्लाया " please मुझे बचाओ, कोई मेरी मदद करो" तभी एक आवाज़ ने मेरी दिल की धड़कने बढ़ा दी।

"विक्रम, नरक की दुनिया में तुम्हारा स्वागत है।"

मैंने सामने देखा तो मुझे माया दिखी " वही रंग-रूप जो मैंने अंतिम बार देखे थे वही लाल रंग की साड़ी जो उसने पहना था, कितनी सुन्दर लग रही थी?"

माया ने चुटकी बजायी और एकदम से सारी चीखे बंद हो गयी।

मैंने कहा "माया तुम मेरे सामने हो, यह सच है या मै कोई ख्वाब देख रहा हूँ।"

"यह सच है विक्रम"

"माया, मुझे माफ़ कर दो, मेरी गलती के कारण तुम मेरे साथ नहीं हो। कितना खुदगर्ज़ था मै जिसने तुम्हारी बात नहीं मानी।"

"मैंने तुम्हे उसी दिन माफ़ कर दिया था जिस दिन तुमने मुझे चाकू से मारा था। मै अपने विक्रम को अच्छे से जानती हूँ वो कातिल नहीं हो सकता। वो तो तुम्हारा नशा था जिसने तुम्हें मारने पर मजबूर किया।"

"फिर उस दिन तुमने मेरे सवालों का जवाब क्यूँ नहीं दिया"

"क्यूंकि मै तुमसे नाराज़ थी, तुम्हारे कारण हमारा बेटा भी शराब पीने लगा था तुमने अपनी जिंदगी तो ख़राब कर रखी थी पर साथ में हमारे परिवार की खुशियाँ भी छिन ली थी।"

"मुझे माफ़ कर दो माया, तुम्हे मेरे कारण ये दिन देखना पड़ा "

"विक्रम, आज मै तुमसे नाराज़ नहीं हूँ बल्कि मुझे तुमपर गर्व है की तुमने मेरे वादों को पूरा किया। आज तुमने सुहानी के साथ-साथ उसके बच्चे को भी बचाया है। आज तुमने हमारे परिवार को एक नयी जिंदगी दी है।"

"नहीं माया, तुमने जो हमारे परिवार के लिए किया उसके सामने कुछ भी नहीं है"

सालों बाद नरक में ही सही पर माया से मिलकर अच्छा लग रहा था मैंने कभी सोचा नहीं था की मै माया से मिल पाऊँगा।

मैंने उससे कहा "मैंने तुम्हे कहाँ नहीं ढूंडा " नदियों में,पहाड़ों में, शहर की गलियों में और उस बगीचे में भी जहाँ हम अक्सर मिला करते थे पर तुम मुझे कहीं नहीं मिली।"

"मै तो हर वक़्त तुम्हारे साथ थी, बस तुमने मुझे पहचाना नहीं, तुमने 3 बार जान देने की कोशिस की उस वक़्त मैंने ही तो तुम्हारी जान बचायी थी, तुम्हे वो छोटी सी बच्ची याद है जिसने तुम्हे मेरा वादा याद दिलाया था वो मै ही तो थी

"पर तुम मुझसे मिली क्यूँ नहीं "

"मै तुम्हे हर एक बात का एहसास दिलाना चाहती थी, मै चाहती थी की मेरा विक्रम अपनी जिम्मेदारियों को समझे और तुमने समझा उसकी मुझे खुशी है।"

माया कितनी महान थी उसने मुझसे सच्चा प्यार किया था पर मैंने उसके प्यार को नहीं समझा। एक नशे की लत ने माया को मुझसे छिन लिया।

मैंने माया से कहा " मै तुमसे एक सवाल पूछूँ???"

"हाँ, पूछों"

"कुछ देर पहले जो चीखने-चिलाने की आवाज़ आ रही थी वो किसकी थी"

"वो आवाज़, उन पापियों की थी जिन्होंने बहुत सारे क़त्ल किये थे? उसे सजा दी जा रही थी।"

"क्या मुझे भी सजा मिलेगी?"

"हाँ, तुम तैयार रहना"

माया ने हँसते हुए कहा " अरे घबराओं नहीं, तुमने तो अपनी गलती सुधारी है इसलिए तुम्हे सजा कम मिलेगी।"

"माया, तुम इस नरक में कैसे, तुम्हे तो स्वर्ग में होना चाहिए था।"

माया ने मजाकिया अंदाज़ में कहा " मुझे तुमसे प्यार करने की सजा मिल रही है उस दिन मैंने पुलिस से झूठ बोला था न, उसकी सजा है???"

"आज से मै और तुम साथ रहेंगे"

"नहीं विक्रम, अभी वक़्त है तुम्हे अपने परिवार के पास वापस जाना होगा, अभी वादा पूरा नहीं हुआ है।"

"नहीं माया, please मुझे खुद से अलग मत करो। मै तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।"

"अभी तुम्हारा वक़्त नहीं आया है तुम्हे राहुल को सही रास्ता दिखाना होगा, उसे इस काबिल बनाना होगा की वो सही गलत का फर्क समझे। जब तुम्हारी ज़िम्मेदारी पूरी हो जायगी तो मै तुम्हे खुद लेने आऊंगी।

"मुझसे वादा करो, की तुम मुझे लेने आओगी"

"मै तुमसे वादा करती हूँ।"

मेरी आँख खुलते ही मेरी साँसे तेज हो गयी। नर्स ने जल्दी से मेरा ऑक्सीजन mask लगाया और चिल्लाई " डॉक्टर patient को होश आ गया है।"

doctor ने कहा " it's a miracle, ये तो मर गया था फिर जिंदा कैसे हो गया।"

यह सब मेरी माया का ही तो कमाल था जो हमारे पास न होते हुए भी हमारे परिवार की रक्षा कर रही थी।

उस दिन भी वही इंस्पेक्टर आया था जिसने मेरी माया से सवाल-जवाब किये थे। उसने राहुल को लेकर कई सवाल किये पर मैंने भी वही किया जो मेरी माया ने मेरे लिए किया था। मैंने राहुल को बचाया।

जब मैंने राहुल को बचाया तो इंस्पेक्टर ने मजाकिया अंदाज़ में कहा " मैंने पहली बार ऐसा परिवार देखा है जो एक दुसरे का क़त्ल करने के बाद भी अपने परिवार का बचाओ करते है। कमाल है जब एक दुसरे से इतना प्यार करते ही हो तो फिर ऐसी गलती करते ही क्यूँ हो। इस बार मै तुमलोगों को छोड़ रहा हूँ पर अगली बार नहीं छोडूंगा।

मैंने राहुल को देखा, वो बाहर कान पकड़े खड़ा था। मैंने अपनी बाहें खोली और उसे गले लगने का इशारा किया। मैंने राहुल को गले से लगा लिया। न जाने कितने सालों बाद बाप-बेटे गले मिले थे। उस दिन राहुल ने मुझसे वादा किया की वो कभी शराब को हाथ नहीं लगाएगा। देर से ही सही पर राहुल को अपनी गलती का एहसास हुआ।

मै अभी बेटे से बात कर ही रहा था की मैंने सुहानी के गोद में बच्चा देखा।

मैंने कहा "ये तुम्हारा बच्चा है।"

राहुल ने कहा "हाँ, पापा जब आप बेहोस थे तब सुहानी ने बच्चे को जन्म दिया।

"क्या है पोता है या पोती"

"पोती है।"

"बहुत सुन्दर है और हंसमुख भी, देखो तो कैसे इठला रही है।"

सुहानी ने कहा " पापा, हम चाहते है की आप इसका नाम रखे?"

मुझे माया की वो बात याद आ गयी जो उसने मुझसे कहा था। उसने मुझसे कहा था की अगर हमारा बेटा हुआ तो उसका नाम राहुल रखेंगे और बेटी हुई तो उसका नाम शिवानी रखेंगे।

मैंने कहा "इसका नाम शिवानी होगा "

हमारी पोती के आने के बाद मेरा राहुल एकदम बदल गया, उसने अपने business को संभाला और अपने परिवार को भी। मेरा बेटा कुछ ही दिनों में इतना ज़िम्मेदार बन जायगा मुझे उसकी उम्मीद नहीं थी पर उसने सब करके दिखाया।

मै उस रात को भूल नहीं सकता जब मै काफी नींद में था और सपने में माया आयी। उसने मुझसे कहा.....

"Happy birthday विक्रम, उठो तुम्हारे लिए एक suprise है???"

मैंने उठा तो देखा, घड़ी में 12 बज रहे थे। अचानक एक bail की आवाज़ ने मेरा ध्यान दरवाज़े की और खिंचा। मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा की एक आदमी गिफ्ट के साथ खड़ा है उसने मुझे गिफ्ट दिए और happy birthday wish किया। मैंने गिफ्ट खोला तो उसमे चाभी थी। मैंने उससे पूछा तो उसने बताया की "20 साल पहले माया मैडम ने हमारी कम्पनी से 20 करोड़ का share ख़रीदा था और उन्होंने कहा था की जब इसकी कीमत 100 करोड़ हो जाये तो आपकी पुस्तैनी बंगला खरीद ले और आपको दे दे। उन्होंने मुझसे खास कहा था की आपके birthday वाला दिन आपको बंगला सौंप दे।

ये मेरा वही बंगला था जिसे मेरे दादा-परदादा ने बनवाया था, न जाने कितने लोगों की यादें इस घर से जुड़ी है। मै भी इसी घर में बड़ा हुआ था और मेरी माया भी शादी के बाद इसी घर में पहला कदम रखी थी मै पैसों के लालच में इतना अँधा हो गया था की इस घर को मैंने रस्तोगी के हाथों बेच दिया। आज मेरी माया ने मुझे फिर से साबित कर दिया की वो इतनी महान क्यूँ है? उसने जो मेरे लिया किया है उसका क़र्ज़ मै किसी जन्म में नहीं चूका सकता।

माया तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो? काश मै तुम्हारे जैसा बन पाता। माया मै तुम्हारी surprise को किसी जन्म में नहीं भूल पाऊँगा।

इन् 10 वर्षों में माया मेरे पास नहीं थी पर उसका साया हर वक़्त मेरे साथ था वो हर दुःख में और हर सुख में मेरे साथ थी। उसने हर कदम पर मुझे एहसास करवाया की वो मेरे आस-पास है।

मै बगीचे में बैठा हवा खा रहा था की तभी मेरा बेटा शिवानी को लेकर आया। उसने शिवानी को मुझे दिया और ख़ुद फ़ोन से बात करने लगा। मै अपनी पोती के साथ खेल रहा था की तभी मेरे सिने में दर्द हुआ। "मैंने अपने शरीर को छूना चाहा पर छू नहीं पाया; अपनी पोती को उठाना चाहा पर उठा नहीं पाया; मैंने राहुल को आवाज़ दी पर उसे मेरी आवाज़ सुनाई नहीं दी " मैंने हवा के जरिये उसके फ़ोन गिरा दिए तब राहुल का ध्यान मेरी ओर गया और उसने शिवानी को उठाया। शिवानी मेरी गोद में बैठी खेल रही थी और मेरा शरीर एकदम शांत था अगर मैंने समय रहते कुछ किया न होता तो मेरी पोती गिर सकती थी। मैंने राहुल को देखा, वो मुझे उठाने की कोशिश कर रहा था और मै एकदम खामोश था। मैंने पहली बार अपने शरीर को खुद से अलग देखा था। अचानक एक तेज हवा के झोंके ने मेरा ध्यान "आम के पेड़ की और खिंचा।"

मैंने पीछे मुड़ के देखा,

"माया सामने खड़ी थी "



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